हाय निराशा कैसे जाये ............??
आज हम लोग हमारे जीवन में निहित निराशाओं के बारे में बात करतें हैं कि कैसे हम अपने जीवन में निराशाओं‚ हताशाओं और परेशानियों से घिरे हुये हैं। सही मायने में देखा जाये तो हम लोग स्वयं ही अपने जीवन में निहित परेशानियाें के लिए जिम्मेदार है क्योंकि हम उनसे निपटने के लिए कोई न कोई अस्थायी हल ढूढने में लगे रहते है बजाय अपने आप को इतना कुशल व सक्षम बनाने के कि ऐसी परेशानियां हमको नजर ही न आयें। यदि हम अपने आप को तराशते हुये अपनी कुशलता को बढाना शुरू कर दें तो निश्चय ही हमे निराशा इतनी छोटी लगने लगेगी कि हम उसे बडी सहजता से नजरअंदाज कर सकते हैं।
मनुष्य भले ही अपने जीवन में कितना ही परेशान क्यों ना हो, उसके जीवन में कितना ही दर्द क्यों ना हो‚ कितनी ही निराशायें‚ परेशानियां या कठिनाइया क्यों न हों... आध्यात्मिक रूप से वह उड़ने के लिए ही बना है। नेपोलियन ने कहा था “जब तक आप अपने पंख नहीं फैलाओगे, तब तक आप यह नहीं जान पाओगे कि आप कितना ऊंचा उड़ सकते हो।"
जब हम अपने जीवन में तूफानों का सामना करते हैं, उस समय हमें सिर्फ और सिर्फ अपने पंख़ों को फैलाने की जरूरत होती है। कभी-कभार जीवन हमारा इम्तिहान ले रहा होता है.... हम अपने जीवन की समस्याओं में फंसते चले जाते हैं। हम अपनी समस्याओं को बोझ की तरह देख सकते हैं और अगर हम चाहें तो उन्हें अपने लिए अवसर भी मान सकते हैं।
हमारी समस्याएं हमारे लिए कुछ ऐसे लाभ लेकर आती हैं जिन्हें हम देखने में असफल हो जाते हैं। ऐसा भी मुमकिन है कि वही समस्याएं हमारे जीवन के लिए कुछ बेहतरीन अवसर लेकर आ रही हों। क्योंकि मान लीजिए आपके सामने कोई उंची दीवार है और उस पर चढने के लिए सीढियां बनी हुयी हैं‚ एक–एक सीढी एक समस्या की तरह आपके सामने है अब हमारी कुशलता पर निर्भर करता है कि हम कितनी आसानी से कितनी सीढियां पार कर लेते हैं‚ जैसे जैसे हम एक सीढी चढ लेते हैं यानि एक समस्या पार कर लेते हैं वैसे ही हम एक कदम उंचे हो जाते हैं यानि हम एक स्टेप और अधिक कुशल हो जाते हैं और अब हम जितनी सीढियां ऊपर पहुंच जाते हैं उतने स्तर से नीचे वाली समस्याएं हम लोगों को इतनी छाेटी लगने लगती हैं कि हम उन्हें नजरअंदाज करने के लायक हाे जाते हैं।
ईश्वर हमारे जीवन में परेशानियां डालता है ताकि हम स्वयं का इम्तिहान ले सकें कि हम कितने अधिक कुशल हो पाये हैं इसी तरह ईश्वर कभी कभी हमारे पंख कतर भी देता है ताकि हम और मजबूत होकर अपने जीवन की कठिनाइयों से लड़ना सीख जाएं। कई बार, हमारी समस्याओं को ही हमारे मार्गदर्शन का जरिया बना देता है, वे उन्हें हमारी परीक्षा के लिए इस्तेमाल करता है या फिर हमें सही मार्ग पर लाने के लिए, क्योंकि दर्द और असफलताएं भी हमें बेहतरीन सीख दे जाती हैं।
शायद इन समस्याओं के जरिए ईश्वर हमें बड़ी बाधाओं से बचाता है। वह इनका उपयोग हमें समग्र रूप से पूर्ण बनाने के लिए भी करता है।
हम मुश्किल समय में अपने लिए पंख तलाश सकते हैं।
कुछ लोगों के लिए आध्यात्मिक उड़ान का अर्थ उस डर से मुक्ति पाना है जो हमें दूसरों के लिए कुछ भी करने से रोकता है। ईश्वर हमें आगे बढ़ाने के लिए कभी तनावपूर्ण तो कभी कष्टप्रद हालातों को पैदा करता है, ताकि हम अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर उड़ना सीख जाएं।
जब हम स्वयं मुश्किल परिस्थितियों में पाते हैं तब हम में से अधिकांश लोग उन हालातों के बोझ के तले दबते चले जाते हैं। जबकि ईश्वर की शायद यही मर्जी हो कि हम अपने सहज वातावरण से बाहर निकलकर जोखिम उठाना सीखें।
एक बार जब हम उड़ना सीख जाते हैं, हमें हमेशा आसमान की ओर नजर रखकर आगे बढ़ना चाहिए। हमें हमेशा आगे की ओर चलते हुए हालातों को दैवीय दृष्टिकोण से देखना चाहिए।
ईश्वर ने हमें मुश्किल हालातों का सामना करने की शक्ति दी है। उदाहरण स्वरूप, रेस में भाग रहे प्रतिभागियों को बहुत सी बाधाओं से गुजरना पड़ता है। अगर हम उन बाधाओं को पार करना नहीं सीखेंगे तो कभी उस रेस में जीत नहीं पाएंगे। हम हमेशा खुद को हारा हुआ ही महसूस करेंगे, लेकिन अगर हम स्वयं को भीतर से मुक्त पाएंगे तो हम उन समस्याओं से आगे के मार्ग को स्पष्ट रूप से देख पाएंगे और पूरे साहस के साथ उस मार्ग पर चलने में भी सक्षम रहेंगे।
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